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You wanted someone to post his pics and I told you; i'm going to post them. Hence, mentioning you in the pics! :D

but yaar Ganga pehley sey hi maili thi................iss nangey key dupki laganey sey toh ab Ganga Mata ko bhi pAAP lag gya hoga :D
 
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केजरीवाल ये चुनाव सीटों के लिए नहीं लड़ रहे


८ दिसंबर २०१३ सवेरे का समय था और टीवी पर झाड़ू लहराते जश्न मनाते,आत्मविश्वास से लबरेज़ आम आदमी नाम की एक नयी पार्टी के कार्यकर्ता दिखाई दे रहे थे और हों भी क्यों न भारत जैसी कठिन राजनीतिक व्यवस्था को तोड़कर वे अर्ध-केन्द्रशासित दिल्ली राज्य मे दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गए थे,कांग्रेस की बहुत बुरी हार हुई थी और लूली लंगड़ी स्थानीय भाजपा कि जीत को भी रोक दिया गया था,लोग भी खुश थे और पार्टी के सदस्य भी|

आज स्थिति वैसी नहीं है,बहुत समय नहीं हुआ है,केवल चार महीने ही गुज़रे है,लोग पार्टी से निराश है देश तो छोडिये जिस दिल्ली अर्ध-राज्य मे ये जीते थे उसमे भी स्थिति अच्छी नहीं है,जिस पार्टी मे रोज दो तीन ‘जाने पहचाने’ लोग जुड़ते थे वहां अब सिर्फ रिजाइन करने कि ही न्यूज़ आती है |

ऐसा क्यूँ हुआ? मुख्य रूप से कारण है पूर्वनियोजित सत्ताछोड़ना,सत्ता मे आके धरने पे बैठ जाना,कांग्रेस के बजाये मोदी का मुख्य विरोध व रोज़ के नाटक,इत्यादि !

उम्मीदवारों का चयन भी अच्छा नहीं हुआ,दिल्ली के सात उम्मीदवारों मे ऐंसे को ढूंढना कठिन हे जिसकी जीत की गारंटी हो,बाकी जगह का तो छोडिये |

आज जनता एक दुसरे कि बुराई से ऊब चुकी है, वह सकारात्मक राजनीती चाहती है,दुसरे बुरे है ये कहने से कुछ नहीं होगा ,तुम क्या करोगे ये बोलो !

आश्चर्य सा प्रतीत होता है कि नयी नयी राजनीती मे आयी आम आदमी पार्टी इतने सारे गलत निर्णय क्यों ले बैठी है ? क्या २५ साल से राजनीती देख रहे योगेन्द्र यादव ने केजरी को ये नहीं बताया होगा कि जनता अश्थिरता पसंद नहीं करती,या कजरी को खुद इतनी सी बात पता नहीं होगी? लगता तो नहीं है |



अगर बी टीम इत्यादि कि षड्यंत्रवादी बातें छोड़ दें तो एक ही निष्कर्ष केजरी के हास्यास्पद व् दुखद ड्रामों को देखकर निकलता है :

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ऊपर दिया हुआ चित्र यह साफ़ प्रदर्शित करता है की जितना जादा बड़ा ड्रामा,उतना मीडिया द्वारा कवरेज और उतने ही पैसे ‘आप’ की झोली में | आम पार्टियों के अपेक्षा समझने मे कठिन आप कि राजनीति को समझने मे ये एडिटेड डाटा का ग्राफ बड़ा मददगार है |



यह तो स्पष्ट हो गया कि सब खेल चंदे का है ,पर चंदे से होगा क्या ? मेरे पास दो थ्योरी है :-

१-केजरीवाल धन इक्कठा करके दिल्ली का चुनाव जीतना चाहते हैन और पूर्ण बहुमत से मुख्मंत्री बनना चाहते हें

इस थ्योरी पर मेरा जादा विश्वास नहीं,क्यों? क्योंकि अगर एसा ही होता तो पहली बात वो सरकार नहीं छोड़ते जिसने दिल्ली के कुछ वर्ग मे उन्हें अलोकप्रिय किया ,दूसरी कि लोकसभा मे बुरे प्रदर्शन व स्वयं कि हार के बाद बीजेपी असेंबली चुनाव थोप देगी,क्या हतोसाहित कार्यकर्ताओं मे उतना उत्साह रह पाएगा ? मुझे यहाँ भी आशंका है |

२-केजरीवाल अन्ना बनना चाहते है,और २०१५-१६ मे चुनाव करना उनका लक्ष्य होगा

इस थ्योरी पर मेरा जादा विश्वास है,वरिष्ट पत्रकार शीला भट्ट भी इससे सहमत हे कि कजरी २०१६ मे चूनाव चाहते हें
बरखा दत्त से बात चीत मे कजरी भी इसका समर्थन कर चुके है
अब ये भी समझ मे आ गया कि वे क्या चाहते है पर ये होगा कैसे ? इसके लिए अपको २०११ मे चलना होगा , विश्वप्रिसिद्ध अन्ना हजारे का २०११ क आन्दोलन मे अन्ना तो केवल मुखोटा थे ,सारा काम तो अरविन्द ने ही किया ,कुछ शोहरत तो मिली पर उतनी नहीं जितनी आन्ना को ,तरीका तो पता चल ही गया था कि मिडिया का इस्तेमाल कर किस तरह से प्रिस्सिध हुआ जा सकता है और जनसमर्थन पाया जा सकता है बस इस फोर्मुले में अन्ना को हटाके दुबारा लागु करके देखना था ,किया भी और २०१३ मे सफलता फिरसे मिली,फोल्लोवेर्स भी मिले और शोहरत का तो पूछिए ही मत |

पर उन्हें यहाँ पर ये समझ मे आ गया कि यहाँ पर वे अपने ‘स्वराज के एजेंडा’ को नहीं लगा सकते इसलिए डेल्ही सीएम कि पोस्ट बेकार ही है,अब निशाना प्रधानमंत्री पद होना चाहिए ,इसलिए उन्होंने पद छोड़ने के तरीके ढूंढे और योजनापूर्वक इसे भी अंजाम दिया |

आगे का प्लान समझने के लिए अपको सीट बटवारे को धयान से देखना होगा:-

आशीष खेतान – बीजेपी के खिलाफ काफी ‘स्टिंग्स’ करते रहे हैं

आशुतोष – IBN7 के पूर्व पत्रकार

अनीता प्रताप

इत्यादि – इत्यादि मेरे पास पूरी लिस्ट नहीं पर चेक करेंगे तो अन्य किसी भी पार्टी कि तुलना मे सर्वाधिक पत्रकार यही हें ,ऐसा क्यों?

आजतक,द हिंदु व अन्य कई बीजेपी विरोधी मीडिया एजेंसीज के पत्रकार भी इनके प्रति लगाव रखते है.कजरी के खासमखास निशांत चतुर्वेदी ने भी इसी कारण अब दुबारा आज तक ज्वाइन कर लिया है.



कजरी ने तो नयी दिल्ली जैसी आप कि अच्छी सीट खेतान जैसे कमज़ोर कैंडिडेट को देदी ,पर बदले मे क्या मिलेगा?

मेरे अनुसार २०१४ मे मोदी कि सरकार आने के बाद मोदी पर सबसे जादा दबाव इकनोमिक रिफॉर्म्स करने का होगा ,जो कि सही भी है ,पर इकोनोमिक रिफॉर्म्स करने पर कुछ समय के लिए महंगाई काफी बढ़ेगी , मूलभूत डीसेल पेट्रोल के दामो पर सरकारी नियंत्रण कम करने का काफ़ि दबाव होगा ,मोदी उद्योगों पर भी काफी महरबान होंगे जिनकी मदद उन्हें इस इलेक्शन मे मिली है और बाहर से आने वाले उद्योग और कम्पनियां उनसे १ विंडो ऑपरेशन कि मांग रख रही है जो लगता है वो पूरी करेंगे .

इन सब के होने से ये एक्सप्रेशन क्रिएट होगा कि मोदी ‘बड़े लोगों’ के एजेंट है,क्योंकि विकास एकदम नीचे नहीं पहुँचता,समय लगता है |यहीं पर आशीष खेतान अदि काम आते है,वे बीजेपी पर इसप्रकार के स्टिंग करवाकर कि मोदी उद्योंगों को आमूलचूल मदद कर रहे है कजरी के लिए स्टेज सेट करेंगे .

स्टेज सेट होजाने के बाद और किसी ‘खुलासे’ के बाद जो गरीब व आमिर के बीच कि खाई को प्रदर्शित करता हो,कजरी धरने पे बैठ जाएँगे या आमरण अनशन पर(जो भी जादा फय्देमंद हो),और कोई असंभव सी मांग रखेंगे ,२४ एक्स ७ मीडिया तो साथ होगा ही और कजरी मानते है कि मोदी गुस्सैल स्वभाव होने के कारण कांग्रेस वाली गलती दोहरा देंगे और वे गरीब आम आदमी के नारे पर शहीद के रुप में जेल चले जाएँगे .२०१४ का बुरा परिणाम देखने के बाद सहियोगी फिर वही गलती नहीं करेंगे जो यूपीए के साथ रहकर कि और मोदी कि सरकार २०१५-२०१६ मे गिर जाएगी व् कजरी सत्ता मे आ जाएँगे,अन्य दलों के समर्थन से |

क्या ऐसा होगा ? देखना पड़ेगा !
 
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केजरीवाल ये चुनाव सीटों के लिए नहीं लड़ रहे


८ दिसंबर २०१३ सवेरे का समय था और टीवी पर झाड़ू लहराते जश्न मनाते,आत्मविश्वास से लबरेज़ आम आदमी नाम की एक नयी पार्टी के कार्यकर्ता दिखाई दे रहे थे और हों भी क्यों न भारत जैसी कठिन राजनीतिक व्यवस्था को तोड़कर वे अर्ध-केन्द्रशासित दिल्ली राज्य मे दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गए थे,कांग्रेस की बहुत बुरी हार हुई थी और लूली लंगड़ी स्थानीय भाजपा कि जीत को भी रोक दिया गया था,लोग भी खुश थे और पार्टी के सदस्य भी|

आज स्थिति वैसी नहीं है,बहुत समय नहीं हुआ है,केवल चार महीने ही गुज़रे है,लोग पार्टी से निराश है देश तो छोडिये जिस दिल्ली अर्ध-राज्य मे ये जीते थे उसमे भी स्थिति अच्छी नहीं है,जिस पार्टी मे रोज दो तीन ‘जाने पहचाने’ लोग जुड़ते थे वहां अब सिर्फ रिजाइन करने कि ही न्यूज़ आती है |

ऐसा क्यूँ हुआ? मुख्य रूप से कारण है पूर्वनियोजित सत्ताछोड़ना,सत्ता मे आके धरने पे बैठ जाना,कांग्रेस के बजाये मोदी का मुख्य विरोध व रोज़ के नाटक,इत्यादि !

उम्मीदवारों का चयन भी अच्छा नहीं हुआ,दिल्ली के सात उम्मीदवारों मे ऐंसे को ढूंढना कठिन हे जिसकी जीत की गारंटी हो,बाकी जगह का तो छोडिये |

आज जनता एक दुसरे कि बुराई से ऊब चुकी है, वह सकारात्मक राजनीती चाहती है,दुसरे बुरे है ये कहने से कुछ नहीं होगा ,तुम क्या करोगे ये बोलो !

आश्चर्य सा प्रतीत होता है कि नयी नयी राजनीती मे आयी आम आदमी पार्टी इतने सारे गलत निर्णय क्यों ले बैठी है ? क्या २५ साल से राजनीती देख रहे योगेन्द्र यादव ने केजरी को ये नहीं बताया होगा कि जनता अश्थिरता पसंद नहीं करती,या कजरी को खुद इतनी सी बात पता नहीं होगी? लगता तो नहीं है |



अगर बी टीम इत्यादि कि षड्यंत्रवादी बातें छोड़ दें तो एक ही निष्कर्ष केजरी के हास्यास्पद व् दुखद ड्रामों को देखकर निकलता है :

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ऊपर दिया हुआ चित्र यह साफ़ प्रदर्शित करता है की जितना जादा बड़ा ड्रामा,उतना मीडिया द्वारा कवरेज और उतने ही पैसे ‘आप’ की झोली में | आम पार्टियों के अपेक्षा समझने मे कठिन आप कि राजनीति को समझने मे ये एडिटेड डाटा का ग्राफ बड़ा मददगार है |



यह तो स्पष्ट हो गया कि सब खेल चंदे का है ,पर चंदे से होगा क्या ? मेरे पास दो थ्योरी है :-

१-केजरीवाल धन इक्कठा करके दिल्ली का चुनाव जीतना चाहते हैन और पूर्ण बहुमत से मुख्मंत्री बनना चाहते हें

इस थ्योरी पर मेरा जादा विश्वास नहीं,क्यों? क्योंकि अगर एसा ही होता तो पहली बात वो सरकार नहीं छोड़ते जिसने दिल्ली के कुछ वर्ग मे उन्हें अलोकप्रिय किया ,दूसरी कि लोकसभा मे बुरे प्रदर्शन व स्वयं कि हार के बाद बीजेपी असेंबली चुनाव थोप देगी,क्या हतोसाहित कार्यकर्ताओं मे उतना उत्साह रह पाएगा ? मुझे यहाँ भी आशंका है |

२-केजरीवाल अन्ना बनना चाहते है,और २०१५-१६ मे चुनाव करना उनका लक्ष्य होगा

इस थ्योरी पर मेरा जादा विश्वास है,वरिष्ट पत्रकार शीला भट्ट भी इससे सहमत हे कि कजरी २०१६ मे चूनाव चाहते हें
बरखा दत्त से बात चीत मे कजरी भी इसका समर्थन कर चुके है
अब ये भी समझ मे आ गया कि वे क्या चाहते है पर ये होगा कैसे ? इसके लिए अपको २०११ मे चलना होगा , विश्वप्रिसिद्ध अन्ना हजारे का २०११ क आन्दोलन मे अन्ना तो केवल मुखोटा थे ,सारा काम तो अरविन्द ने ही किया ,कुछ शोहरत तो मिली पर उतनी नहीं जितनी आन्ना को ,तरीका तो पता चल ही गया था कि मिडिया का इस्तेमाल कर किस तरह से प्रिस्सिध हुआ जा सकता है और जनसमर्थन पाया जा सकता है बस इस फोर्मुले में अन्ना को हटाके दुबारा लागु करके देखना था ,किया भी और २०१३ मे सफलता फिरसे मिली,फोल्लोवेर्स भी मिले और शोहरत का तो पूछिए ही मत |

पर उन्हें यहाँ पर ये समझ मे आ गया कि यहाँ पर वे अपने ‘स्वराज के एजेंडा’ को नहीं लगा सकते इसलिए डेल्ही सीएम कि पोस्ट बेकार ही है,अब निशाना प्रधानमंत्री पद होना चाहिए ,इसलिए उन्होंने पद छोड़ने के तरीके ढूंढे और योजनापूर्वक इसे भी अंजाम दिया |

आगे का प्लान समझने के लिए अपको सीट बटवारे को धयान से देखना होगा:-

आशीष खेतान – बीजेपी के खिलाफ काफी ‘स्टिंग्स’ करते रहे हैं

आशुतोष – IBN7 के पूर्व पत्रकार

अनीता प्रताप

इत्यादि – इत्यादि मेरे पास पूरी लिस्ट नहीं पर चेक करेंगे तो अन्य किसी भी पार्टी कि तुलना मे सर्वाधिक पत्रकार यही हें ,ऐसा क्यों?

आजतक,द हिंदु व अन्य कई बीजेपी विरोधी मीडिया एजेंसीज के पत्रकार भी इनके प्रति लगाव रखते है.कजरी के खासमखास निशांत चतुर्वेदी ने भी इसी कारण अब दुबारा आज तक ज्वाइन कर लिया है.



कजरी ने तो नयी दिल्ली जैसी आप कि अच्छी सीट खेतान जैसे कमज़ोर कैंडिडेट को देदी ,पर बदले मे क्या मिलेगा?

मेरे अनुसार २०१४ मे मोदी कि सरकार आने के बाद मोदी पर सबसे जादा दबाव इकनोमिक रिफॉर्म्स करने का होगा ,जो कि सही भी है ,पर इकोनोमिक रिफॉर्म्स करने पर कुछ समय के लिए महंगाई काफी बढ़ेगी , मूलभूत डीसेल पेट्रोल के दामो पर सरकारी नियंत्रण कम करने का काफ़ि दबाव होगा ,मोदी उद्योगों पर भी काफी महरबान होंगे जिनकी मदद उन्हें इस इलेक्शन मे मिली है और बाहर से आने वाले उद्योग और कम्पनियां उनसे १ विंडो ऑपरेशन कि मांग रख रही है जो लगता है वो पूरी करेंगे .

इन सब के होने से ये एक्सप्रेशन क्रिएट होगा कि मोदी ‘बड़े लोगों’ के एजेंट है,क्योंकि विकास एकदम नीचे नहीं पहुँचता,समय लगता है |यहीं पर आशीष खेतान अदि काम आते है,वे बीजेपी पर इसप्रकार के स्टिंग करवाकर कि मोदी उद्योंगों को आमूलचूल मदद कर रहे है कजरी के लिए स्टेज सेट करेंगे .

स्टेज सेट होजाने के बाद और किसी ‘खुलासे’ के बाद जो गरीब व आमिर के बीच कि खाई को प्रदर्शित करता हो,कजरी धरने पे बैठ जाएँगे या आमरण अनशन पर(जो भी जादा फय्देमंद हो),और कोई असंभव सी मांग रखेंगे ,२४ एक्स ७ मीडिया तो साथ होगा ही और कजरी मानते है कि मोदी गुस्सैल स्वभाव होने के कारण कांग्रेस वाली गलती दोहरा देंगे और वे गरीब आम आदमी के नारे पर शहीद के रुप में जेल चले जाएँगे .२०१४ का बुरा परिणाम देखने के बाद सहियोगी फिर वही गलती नहीं करेंगे जो यूपीए के साथ रहकर कि और मोदी कि सरकार २०१५-२०१६ मे गिर जाएगी व् कजरी सत्ता मे आ जाएँगे,अन्य दलों के समर्थन से |

क्या ऐसा होगा ? देखना पड़ेगा !

JUST EXAGERRRAAAATEEEED TOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO MUCH.............

KEJRI DON'T HAVE A POWER TO ANYTHING ONCE MODI COMES TO POWER........

I GET THE FEELING THAT HE WILL EVEN LOSE DELHI AS THERE WILL BE NO RE-ELECTIONS BUT IT WILL BE BJP THAT WILL FOR THE GOVT.


@Parul

Lok Sabha polls 2014: Let down by AAP, West Delhi may vote for BJP - The Economic Times
 
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JUST EXAGERRRAAAATEEEED TOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO MUCH.............

KEJRI DON'T HAVE A POWER TO ANYTHING ONCE MODI COMES TO POWER........

I GET THE FEELING THAT HE WILL EVEN LOSE DELHI AS THERE WILL BE NO RE-ELECTIONS BUT IT WILL BE BJP THAT WILL FOR THE GOVT.


@Parul

Lok Sabha polls 2014: Let down by AAP, West Delhi may vote for BJP - The Economic Times

I dont think that is exaggerated :|

Yes he will but media is with him for some reason,which i stated in my blog :)

Kejri started 2011 movement on advice from rajdeep of IBN CNN

 
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Mitrooon zara ek dafa gujarat ki development ko toh dekh loh :enjoy:

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