Prime Minister's Office
21-February, 2018 13:46 IST
Text of PM’s to address at National Conference on 'Agriculture 2022: Doubling Farmers' Income' (20.02.2018)
देशभर से आए वैज्ञानिकगण, किसान बंधु और यहां उपस्थिति सभी महानुभाव। हम सभी बहुत ही महत्वपूर्ण, अति गंभीर और बहुत ही आवश्यक विषय पर मंथन के लिए यहां एकत्र हुए हैं।
मैंने अभी आप लोगों के presentation देखे, आपके विचार सुने। मैं आपको इस परिश्रम के लिए, इस मंथन के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। सच है, कृषि एक ऐसा विषय है जिसने हजारों वर्षों पहले से हमारी सभ्यता को गढ़ा है, उसे बचाया है, उसे सशक्त किया है। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि-
कृषि धन्या, कृषि मेध्या
जन्तोनाव, जीवनाम कृषि
यानी कृषि संपत्ति और मेधा प्रदान करती है और कृषि ही मानव जीवन का आधार है। इसलिए जो विषय इतना पुराना है, जिस विषय पर भारतीय संस्कृति और भारतीय पद्धतियों ने पूरे विश्व को दिशा दिखाई है, खेती की तमाम तकनीकों, उसका परिचय करवाया है- उस विषय पर जब हम बात करे हैं तो इतिहास, वर्तमान और भविष्य, तीनों का ध्यान रखना आवश्यक है।
इतिहास में ऐसे वर्णन मिलते हैं जब विदेश से आए हुए लोग भारत की कृषि पद्धतियों को देखकर हैरान रह गए। इतनी उन्नत व्यवस्था, इतनी उन्नत तकनीक, वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित हमारी कृषि ने पूरे विश्व को बहुत कुछ सिखाया है। हमारे यहां घाघ और और भटरी जैसे किसान कभी भी, वे जिन्होंने खेती पर मौसम को लेकर बहुत सटीक कविताएं लिखी हैं। लेकिन गुलामी के लंबे कालखंड में ये सारा अनुभव, कृषि को लेकर हमारी बनाई हुई सारी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गईं।
स्वतंत्रता के बाद हमारे देश के किसान ने अपना खून-पसीना बहाकर खेती को फिर से संभाला। आजादी के बाद दाने-दाने को तरस रहे हमारे किसान ने खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया है। पिछले वर्ष तो हमारे किसानों ने परिश्रम से खाद्यान्न और फल-सब्जियों का उतना किया जितना पहले कभी नहीं हुआ। ये हमारे देश के किसानों का सामर्थ्य है कि सिर्फ एक साल में देश में दाल का उत्पादन लगभग 17 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 23 मिलियन टन हो गया है।
स्वतंत्रता के बाद की इस यात्रा में एग्रीकल्चर सेक्टर का विस्तार तो हुआ, लेकिन किसान का अपना व्यक्तिगत विकास और सिकु़ड़ता चला गया। खेती से आमदनी दूसरे सेक्टरों की तुलना में कम हुई, तो आने वाली पीढ़ियों ने खेत में हल चलाना छोड़कर शहर में छोटी-मोटी नौकरी करना ज्यादा बेहतर समझा। समय ऐसा आया कि देश को food security देने वाले किसान कि अपनी income security खतरे में पड़ गई। ये स्थितियां आपको पता हैं, बल्कि संभवत: मुझसे भी कहीं ज्यादा पता हैं। लेकिन मैं फिर भी स्थिति के बारे में आपसे बात कर रहा हूं क्योंकि जब भी हम पुरानी परिस्थितियों का analyze करते हैं, तभी नए रास्ते निकलते हैं, तभी नई एप्रोच के साथ काम करने का तरीका सूझता है। तभी पता चलता है कि क्या कुछ पहले हुआ जो अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाया, जिसे भविष्य में सुधारने की, सुधारे जाने की आवश्यकता है। यही analyses आधार बने देश में किसानों की आय को दो गुना करने का लक्ष्य। एक ऐसा लक्ष्य जिसकी प्राप्ति पुराने एप्रोच के साथ संभव नहीं थी, एक ऐसा लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए पूरे एग्रीकलचर सेक्टर की over hauling की आवश्यकता थी।
जब इस लक्ष्य को सामने रखकर छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाना शुरू किया तो धीरे-धीरे इसका विस्तार एक बड़े कृषि आंदोलन में बदलता हुआ देखा जा रहा है।
साथियो, हम सभी ने खेतों में देखा है कि कई बार जब बैल को लंबी रस्सी से खूंटे में बांध दिया जाता है तो वो गोल-गोल घूमता रहता है। वो सोचता है कि वो चले जा रहा है, लेकिन सच्चाई यही है कि उसने खुद अपना दायरा बांध लिया होता है और वो खुद उसी में दौड़ता रहता है। भारतीय कृषि को भी इसी तरह के बंधनों से मुक्ति दिलाने की एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी हम सब पर है।
किसान की उन्नति हो, किसान की आमदनी बड़े- इसके लिए बीज से बाजार तक फैसले लिए जा रहे हैं। उत्पादन में आत्मनिर्भरता के इस दौर में पूरे Eco-system किसानों के लिए हितकारी बनाने का काम किया जा रहा है। किसानों की आय बढ़ाने के विषय पर बनी Inter-ministerial committee, नीति आयोग आप जैसे अनेक वैज्ञानिकों, किसानों और एग्रीकल्चर सेक्टर केस्टेक होल्डरों के साथ गहन मंथन करके सरकार ने एक दिशा तय की है और उस रास्ते पर बढ़ रहे हैं।
इस बजट में किसानों को उनकी फसलों की उचित कीमत दिलाने के लिए एक बड़े फैसले का ऐलान किया है। और हमारे पाशा पटेल ने उत्साह के साथ उसका वर्णन भी किया है। इसके अंतर्गत किसानों को उनकी फसलो का कम से कम यानी लागत के ऊपर 50 प्रतिशत यानी डेढ़ गुना मूल्य सुनिश्चित किया जाएगा। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के एलान का पूरा लाभकिसानों को मिले, इसके लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रही है।
पुरानी जो कमियां हैं उसको दूर करना है। fool proof व्यवस्था को विकसित करना है। भाइयों और बहनों किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार ने चार अलग-अलग स्तरों पर फोकस किया है।
पहला-ऐसे कौन-कौन से कदम उठाए जाएं जिनसे खेती पर होने वाला उनका खर्च कम हो।
दूसरा, ऐसे कौन से कदम उठाए जाएं जिससे उन्हें अपनी पैदावार की उचित कीमत मिले।
तीसरा- खेत से लेकर बाजार तक पहुंचने के बीच फसलों, फलों, सब्जियों की जो बर्बादी होती है, उसे कैसे रोका जाए।
और चौथा, ऐसा क्या कुछ हो जिससे किसानों की अतिरिक्त आय की हम व्यवस्था कर सकें। हमारी सरकार ने सारे नीतिगत फैसले, सारे तकनीकी फैसले, सारे कानूनी फैसले इन्हीं चार स्तरों पर आधारित रखे हैं। ज्यादा से ज्यादा तकनीक को अपने फैसलों से जोड़ा और इसी का परिणाम है सकारात्मक नतीजे मिलने लगे हैं।
जैसे अगर यूरिया की नीम कोटिंग की बात की जाए तो उस एक फैसले ने किसानों का खर्च काफी कम किया है। यूरिया की 100 प्रतिशत नीम कोटिंग की वजह से यूरिया की efficiency बढ़ी है और ये सामने आ रहा है कि अब उतनी ही जमीन के लिए किसान को कम यूरिया डालना पड़ता है। कम यूरिया डालने की वजह से पैसे की बचत और ज्यादा पैदावार की वजह से अधिक कमाई। ये बदलाव यूरिया की नीम कोटिंग से आ रहा है।
भाइयों और बहनों अब तक देश में 11 करोड़ से ज्यादा किसानों को Soil Health Card दिया जा चुका है। soil health card की वजह से अनाज की पैदावार बढ़ी है। किसानों को अब पहले से पता होता है कि मिट्टी में किस चीज की कमी है, किस तरह की खाद की आवश्यकता है। देश के 19 राज्यों में हुई एक स्टडी में सामने आया है कि soil health card के आधार पर खेती करने की वजह से केमिकल फर्टिलाइजर के इस्तेमाल में 8 से 10 प्रतिशत की कमी आई और उत्पादन में 5 से 6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
लेकिन साथियो, Soil Health Card का पूरा फायदा तभी मिल पाएगा जब हर किसान इस कार्ड से मिलने वाले लाभ को समझ कर उसके हिसाब से अपनी खेती करे। ये तब संभव है जब इसका पूरा eco-system डेवलप हो जाए। मैं चाहूंगा कि Soil Health Testing और उसके नतीजों के आधार पर किसान को फसल और Package of Productsकी ट्रेनिंग के module को हमारी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में BSC Agriculture के कोर्स में जोड़ा जाए। इस मोड्यूल को skill development से भी जोड़ा जा सकता है।
जो छात्र ये कोर्स पास करेंगे, उन्हें एक विशेष सर्टिफिकेट देने पर भी विचार किया जा सकता है। इस सर्टिफिकेट के आधार पर छात्र अपनी Soil Health Testing Lab गांव के अंदर खोल सकता है। उन्हें मुद्रा योजना के तहत लोन मिल सके, इस तरह की व्यवस्था के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। भविष्य में जब सारी Labs, Central Databaseसे connect होंगी, soil health के आंकड़े central portal पर उपलब्ध होंगे तो वैज्ञानिकों और किसान, दोनों को बहुत आसानी होगी। Soil Health Card के इस central pool से जानकारी लेकर हमारे कृषि वैज्ञानिक मिट्टी की सेहत, पानी की उपलब्धता और जलवायु के बारे में किसानों को उचित जानकारी दे सकें, इस तरह का सिस्टम विकसित किया जाना चाहिए।
साथियों हमारी सरकार ने देश की एग्रीकल्चर पॉलिसी को एक नई दिशा देने का प्रयास किया है। योजनाओं के implementation का तरीका बदला है। इसका उदाहरण है प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना। इसके तहत दो अलग-अलग एरिया पर एक साथ काम किया जा रहा है। फोकस देश में micro irrigation का दायरा बढ़ाने और दूसरा existing irrigation network है, उसे मजबूत करना।
इसलिए सरकार ने तय किया कि दो-दो, तीन-तीन दशकों से अटकी हुई देश की 99 सिंचाई परियोजनाओं को तय समय में पूरा कर लिया जाए। इसके लिए 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक का प्रावधान किया गया। ये सरकार के निरंतर प्रयास का ही असर है कि इस साल के अंत तक लगभग 50 योजनाएं पूरी हो जाएंगी और बाकी अगले साल तक पूरा करने का लक्ष्य है।
मतलब जो काम 25-30 साल से अटका हआ था, वो हम 25-30 महीने में पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरी होती हर सिंचाई परियोजना देश के किसी न किसी हिस्से में किसान का खेती पर होने वाला खर्च कम कर रही है, पानी को लेकर उसकी चिंता कम कर रही है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत अब तक 20 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन को भी micro irrigation के दायरे में लाया जा चुका है।
एग्रीकल्चर सेक्टर में इंश्योरेंस की क्या हालत थी, इससे भी आप भली-भांति परिचित हैं। किसान अपनी फसल बीमा कराने ज्यादा था तो उसे ज्यादा प्रीमियम देना पड़ता था। फसल बीमा का दायरा भी बहुत छोटा सा था। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत हमारी सरकार ने न सिर्फ प्रीमीयम कम किया बल्कि इंश्योरेंस का दायरा भी हमने बढ़ाया।
साथियों मुझे बताया गया है कि पिछले वर्ष इस योजना के तहत 11 हजार करोड़ रुपये की क्लेम राशि किसानों को दे दी गई है। अगर प्रति किसान या प्रति हेक्टेयर दी गई क्लेम राशि को देखा जाए तो ये पहले के मुकाबले दोगुनी हुई है। ये योजना कितने किसानों का जीवन बचा रही है, कितने परिवारों को बचा रही है, ये कभी हेडलाइन नहीं बनेगी, कोई ध्यान नहीं देगा। इसलिए हम सभी का कर्तव्य है कि ज्यादा से ज्यादा किसानों को इस योजना से हम जोड़ें।
सरकार अब इस लक्ष्य के साथ काम कर रही है कि वर्ष 2018-19 में कम से कम 50 प्रतिशत बोई गई फसल इस योजना के दायरे में हो। भाइयो और बहनों हमारी सरकार देश के एग्रीकल्चर सेक्टर में एक market architecture विकसित कर रही है। किसानों को और ज्यादा भला तभी होगा जबCooperative Federalism की भावना पर चलते हुए केंद्र और राज्य सरकार मिल करके फैसले ले।
अब इसलिए किसान हित से जुड़े हुए modern act बनाकरराज्य सरकारों से उन्हें लागू करने का आग्रह किया गया है। एग्रीकल्चर प्रोड्यूस और लाइवस्टॉक मार्केटिंग से जुड़ा हुआ एक land lease act हो, warehousing guidelines का सरलीकरण हो, ऐसे कितने ही कानूनी फैसलों के माध्यम से हमारी सरकार किसानों को सशक्त करने का काम कर रही है।
2022 तक किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य को मिलकर काम करना ही होगा। खेत से निकल करके बाजार तक पहुंचने से पहले किसानों की उपज बर्बाद न हो, इसके लिए प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना के तहत काम किया जा रहा है। विशेष ध्यान agriculture sector को मजबूत करने पर है। Dry storage, cold storage, वेयर हाउसिंग के माध्यम से पूरी सप्लाई चेन को reform किया जा रहा है।
इस बजट में जिस operation green का ऐलान किया है वो भी सप्लाई चेन व्यवस्था से जुड़ा है। ये फल और सब्जियां पैदा करने वाले किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा। जैसे देश में दूध के क्षेत्र में Amul मॉडल बहुत कामयाब रहा, लाखों किसानों की आय बढ़ाने वाला रहा, वैसे ही Operation Green भी ‘टॉप’ यानी Tomato, Onion और Potato उगाने वाले किसानों के लिए लाभकारी रहेगा।
साथियोंrule और returns markets या गांव की स्थानीय मंडियों का wholesale market यानी APMC और फिर ग्लोबल मार्केट तक integration किया जाना, ये बहुत ही आवश्यक है।
मुझे बताया गया है कि अंग्रेजों के समय कमीशन बना था। उसने भी यही सिफारिश की थी कि किसानों के लिए हर 5-6 किलोमीटर पर एक मार्केट होना चाहिए। सौ वर्ष पहले जो चीज सोची गई थी, अब उसे लागू करने का सौभाग्य मुझे मिला है। इस बजट में ग्रामीण रिटेल एग्रीकल्चर मार्केट, यानी GRAM की अवधारणा इसी का परिणाम है। इसके तहत देश के 22 हजार ग्रामीण हाटों को जरूरी infrastructure के साथ upgrade किया जाएगा और फिर उन्हें APMC के साथ integrated कर दिया जाएगा। यानी एक तरह से अपने खेत के 5-10-15 किलोमीटर के दायरे में किसान के पास ऐसी व्यवस्था होगी जो उसे देश के किसी भी मार्केट से connect कर सकेगी। किसान इन ग्रामीण हाटों पर ही अपनी उपज सीधे उपभोक्ताओं को बेच सकेगा।
आने वाले दिनों में ये केंद्र किसानों की आय बढ़ाने, रोजगार और कृषि आधारित ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था के नए ऊर्जा केंद्र बनेंगे। इस स्थिति को और मजबूत करने के लिए सरकार farmer producer organization- FPO को बढ़ावा दे रही है। किसान अपने क्षेत्र में, अपने स्तर पर छोटे-छोटे संगठन बनाकर भी ग्रामीण हाटों और बड़ी मंडियों से जुड़ सकते हैं। इस तरह के संगठनों का सदस्य बनकर वो थोक में खरीद पाएंगे, थोक में बिक्री कर पाएंगे और इस तरह अपनी आमदनी भी बढ़ा पाएंगे।
इस बजट में सरकार ने ये भी ऐलान किया है कि farmer producer organization, कोऑपरेटिव सोसायटियों की तरह ही इन्कम टैक्स में छूट दी जाएगी। महिला सेल्फ हेल्प ग्रुपों को इन Farmer Producer Organization की मदद के साथ organic, aromatic और herbal खेती के साथ जोड़ने की योजना भी किसानों की आय बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।
साथियो आज के समय की मांग है कि हम Green Revolution और White Revolution के साथ-साथ Water Revolution, Blue Revolution, Sweet Revolution और Organic Revolution को भी हमें उसके साथ integrate करना होगा, उसके साथ जोड़ना होगा। ये वो क्षेत्र हैं जो किसानों के लिए अतिरिक्त आय और आय के मुख्य स्रोत, दोनों ही हो सकते हैं। ऑर्गेनिक खेती, मधुमक्खी पालन, See weedकी खेती, Solar फार्म, ऐसे तमाम आधुनिक विकल्प भी हमारे किसानों के सामने हैं। आवश्यकता उन्हें ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने की है।
मेरा आग्रह होगा कि इनके बारे में और विशेषकर परम्परागत और ऑर्गेनिक खेत के बारे में जानकारी देने के लिए एक digital platform शुरू किया जाए। इस digital platform के माध्यम से मार्केट डिमांड, बड़े कस्टमर, सप्लाई चेन के बारे में किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग से जुड़ी जानकारी मुहैया कराई जा सकती है।
खेती के इन सब-सेक्टर्स में काम करने वाले किसानों को कर्ज मिलने में और आसानी हो, इसके लिए भी सरकार काम कर रही है। इस बजट में 10 हजार करोड़ रुपये की राशि से विशेषकर fisheries और animal husbandry को ध्यान में रखते हुए दो infrastructure fund गठित करने का ऐलान किया गया है। किसानों को अलग-अलग संस्थाओं और बैंकों से कर्ज मिलने में दिक्कत न हो, इसके लिए पिछले तीन वर्ष में कर्ज दी जाने वाली राशि साढ़े आठ लाख करोड़ रुपये से बढ़कर अब इस बजट में 11 लाख करोड़ रुपये कर दी गई है।
किसानों को कर्ज के लिए राशि उपलब्ध कराने के साथ ही सरकार ये भी सुनिश्चित कर रही है कि उन्हें समय पर लोन मिले और उचित राशि का लोन मिले। अक्सर देखा गया है कि छोटे किसानों को कोऑपरेटिव सोसायटियों से कर्ज लेने में दिक्कत आती है। इसलिए हमारी सरकार ने तय किया कि वो देश की सारी प्राइमरी एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव सोसायटियों का कम्प्यूटरीकरण करेगी। अगले दो वर्ष में जब ऐसी 63,000 सोसायटियों का कम्प्यूटरीकरण पूरा होगा तो कर्ज देने की प्रक्रिया में और ज्यादा पारदर्शिता आएगी।
जन-धन योजना और किसान क्रेडिट कार्ड द्वारा भी किसान को कर्ज दिए जाने की राह आसान बनाई गई है। साथियों जब मुझे बताया गया कि दशकों पहले एक कानून में बांस को पेड़ कह दिया गया और इसलिए उसे बिना मंजूरी काटा नहीं जा सकता। बिना मंजूरी उसे कहीं ले नहीं जासकते। तो मैं हैरत में पड़ गया था। सभी को पता था कि बांस के construction sector में क्या वैल्यू है। फर्नीचर बनाने में, handicraft बनाने में, अगरबत्ती में, पतंग में यानी माचिस में भी बांस का इस्तेमाल होता है। लेकिन हमारे यहां बांस काटने की अनुमति लेने के लिए प्रक्रिया इतनी जटिल थी कि किसान अपनी जमीन पर बांस लगाने से बचता था। इस कानून को हमने अब बदल दिया है। इस फैसले से बांस भी किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
एक और बदलाव की ओर हम बढ़ रहे हैं और ये बदलाव है AgroSpecies से जुड़ा हुआ। साथियो हमारे देश में इमारती लकड़ी का जितना उत्पादन होता है, वो देश की आवश्यकता से बहुत कम है।Supply और demand का गैप इतना ज्यादा है और पेड़ों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए सरकार अब multipurpose tree species की plantation पर जोर दे रही है। आप सोचिए किसान को अपने खेत में ऐसे पेड़ लगाने की स्वतंत्रता हो जिसे वो 5 साल, 10 साल, 15 साल में अपनी आवश्यकता के अनुसार काट सकें, उसका transport कर सकें, तो उसकी आय में कितनी बढ़ोत्तरी होगी।
‘हर मेढ़ पर पेड़’ का concept किसानों की बहुत बड़ी जरूरत को पूरा करेगा और इससे देश के पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा। मुझे खुशी है कि देश के 22 राज्य इस नियम से जुड़े बदलाव को अपने यहां लागू कर चुके हैं। एग्रीकल्चर सेक्टर में solar energy का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल भी किसानों की आय बढ़ाएगा। इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले तीन साल में सरकार ने लगभग पौने तीन लाख सोलार पंप किसानों के लिए स्वीकृत किए हैं। इसके लिए लगभग ढाई हजार करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई है। इससे डीजल पर होने वाले उनके खर्च की भी काफी बचत हुई है।
अब सरकार किसानों को grid connected solar pump देने की दिशा में बढ़ रही है। ताकि जो ज्यादा बिजली बने वो किसान को आर्थिक रूपसे और मदद करे।
साथियो खेतों से जो बायप्रोडक्ट निकलता है, वो भी आय का बहुत बड़ा माध्यम है। पहले इस दिशा में भी बहुत नहीं सोचा गया लेकिन हमारी सरकार agriculture waste से wealth बनाने पर भी काम कर रही है। यहां मौजूदा अधिकांश लोग ऐसी ही एक बर्बादी से भलीभांति परिचित हैं। ये बर्बादी होती है। ये बर्बादी होती है केले के पेड़ की, केले की पत्तियां काम आ जाती हैं, फल बिक जाते हैं, लेकिन उसका जो तना होता है, वो किसानों के लिए समस्या बन जाता है। कई बार किसानों को हजारों रुपये इन तनों को काटने या हटाने में खर्च करने पड़ जाते हैं। इसके बाद इन तनों को कहीं सड़क के किनारे ऐसे फेंक दिया जाता है। जबकि यही तना industrial paper बनाने के काम में, फेबरिक बनाने में काम में इस्तेमाल किया जा सकता है।
देश के अलग-अलग हिस्सों में जब इस तरह की मुहिम जोर पकड़ रही है जो agriculture waste से wealth के लिए काम कर रही हैं।Coir waste हो, coconut shells हों, bamboo waste हो, फसल काटने के बाद खेत में बचा शेष हो, इन सभी की आमदनी बढ़ सकती है।
इस बजट में सरकार ने गोवर्धन योजना का एलान भी किया है। ये योजना ग्रामीण स्वच्छता बढ़ाने के साथ ही गांव में निकलने वाले बायोगैस से किसानों एवं पशुपालकों की आमदनी बढ़ाने में मदद करेगी। और भाइयो और बहनों, ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ बायोप्रोडक्ट से ही wealth बन सकती है। जो मुख्य फसल है, main product है, कई बार उसका भी अलग इस्तेमाल किसानों की आमदनी बढ़ा सकता है। जैसे गन्ने से इथेनॉल का उत्पादन। हमारी सरकार ने इथेनॉल से जुड़ी पॉलिसी में बड़ा बदलाव करते हुए अब पेट्रोल में इथेनॉल की 10 प्रतिशत blending को स्वीकृति दे दी है। यानी चीनी से जुड़ी demand पूरी करने के बाद जो गन्ना बचेगा वो इथेनॉल उत्पादन में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इससे गन्ना किसानों की स्थिति बेहतर हुई है।
देश में एग्रीकल्चर सेक्टर किस तरह से ऑपरेट करता है, हमारी सरकार उस व्यवस्था को बदल रही है। एग्रीकल्चर सेक्टर में एक नए कल्चर की स्थापना की जा रही है। ये कल्चर हमारे सामर्थ्य, हमारे सुसाधन, हमारे सपनों को न्याय देने वाला होगा। यही कल्चर 2022 तक संकल्प से सिद्धि की हमारी यात्रा को पूरा करेगा। जब देश के गांवों का उदय होगा तभी भारत का भी उदय होगा। जब देश सशक्त होगा तो देश का किसान अपने-आप सशक्त हो जाएगा।
और इसलिए और आज जो मैंने presentation देखे हैं। ये हमारा पाशा पटेल को ये शिकायत थी कि उसको आठ ही मिनट मिली, मैं उसको घंटे देता रहता हूं। लेकिन जो विचार मैंने सुने हैं – ये सही है कि यहां कुछ ही समय में सारी बातें प्रस्तुत की गई हैं। लेकिन आपने जो मेहनत की है, इसके पूर्व जो आपने लोगों से संपर्क करके जानकारियां एकत्र की हैं, छोटे समूहों में यहां आने से पहले आपने उसका analysis किया है- एक प्रकार से काफी लोगों को जोड़ करके इसमें से कुछ न कुछ अमृत निकला है। आपकी मेहनत का एक पल भी बर्बाद नहीं होने दिया जाएगा। आपके सुझावों को भी इतनी ही गंभीरता से हर स्तर पर सरकार में जांचा-परखा जाएगा। हो सकता है कुछ तत्काल हो पाए, कुछ बाद में हो पाए लेकिन ये मेहनत करने के पीछे एक प्रामाणिक प्रयास रहा था कि जब तक हम सरकारी दायरे में सोचने के तरीके को बदलना है, किसान की मूलभूत बातों को समझना है तो जो लोग धरती से जुड़े हैं, उनसे हम जुड़ेंगे तो शायद व्यावहारिक चीजों को ले पाएंगे। और इसीलिए देशभर में ये प्रयास करके आप सब अनुभवी लोगों के साथ विचार-विमर्श का ये प्रयास किया है।
दूसरी बात है, मैं चाहूंगा कि इसको कैसे आगे बढ़ाएं। पहले तो भारत सरकार के सभी विभाग जो इससे संबंधित हैं, उसके सभी अधिकारी यहां मौजूद हैं, संबंधित कई मंत्री भी यहां मौजूद हैं। इन सारे सुझावों पर नीति आयोग के नेतृत्व में एक मंत्रालयों के बीच में coordination कैसे हो। इनके साथ विचार-विमर्श हो और actionable point कैसे निकाले जा सकते हैं, priority कैसे तय हो। संसाधनों के कारण कोई काम अटकता नहीं है ये मेरा विश्वास है।
दूसरा, जैसे हम सब मानते हैं कि हमने परम्परागत परम्पराओं से बाहर निकलना है। हमें टेक्नोलॉजी और विज्ञान को स्वीकार करना होगा और जिस विज्ञान ने बर्बादी लाई है, उस विज्ञान से मुक्ति लेनी पड़ेगी। किसी समय जरूरी होगा लेकिन अगर वो कालबाह्य हो गया है तो उसको पकड़ करके चलने की जरूरत नहीं है, उसमे से बाहर आने की जरूरत है। लेकिन इसके लिए अलग से efforts करने होंगे। मैं चाहूंगा जैसे startups का विषय आया है, ऐसी चीजों पर हमारी agriculture universities, उनमें इसी विषय पर फोकस करके कोई काम हो सकता है क्या? इसी प्रकार से यहां जितने subjects आए हैं, क्या?Agriculturestudents के लिए हम Hackathon जैसे कार्यक्रम कर सकते हैं क्या?
और वे बैठ करके- पिछले दिनों मैंने गर्वमेंट की कोई 400 समस्याओं को ले करके, हमारे देश के इंजीनियरिंग कॉलेज के स्टूडेंट्स आए, जिनके लिए हैकेथॉन का कार्यक्रम किया था। और 50-60 हजार स्टूडेंट्स ने ये विषय लिया और nonstop 36-36 घंटे बैठ करके उन्होंने इस बात को चर्चा- विमर्श की और सरकार को सुझाव दिए। उसमें से कई departments की समस्याओं का समाधान, जो सरकार में सालों से नहीं होता था, इन हमारे नौजवानों ने टेक्नोलॉजी के माध्यम से process perfect करने में काम किया।
मैं चाहूंगा कि हमारी agriculture universitiesHackathonकरें। उसी प्रकार से हमारी IITs हों या III ITs हों या हमारे leading engineering collage हों, वे क्या एक सप्ताह या एक दस दिन, आजकल हर कॉलेज robotic के लिए सप्ताह मनाती है, दो सप्ताह मनाती है; अच्छी बात है। Nano technology के लिए week मनाते हैं, प्रयोग होते हैं, अच्छी चीज है। क्या हम हमारी आईआईटी, हमारी III IT या हमारे लीडिंग इंजीनियरिंग कॉलेज देशभर में thematic group में उनको Agri-Tech के संबंध में दस दिन काएक पूरा उत्सव मनाएं। सारे technology brain मिल करके भारत की आवश्यकता के अनुसार एक विचार-विमर्श करें और उसमें competition का हम प्रयास कर सकते हैंक्या?
अब फिर उनको आगे ले जाएं। उसी प्रकार से जो विषय मैंने मेरे भाषण में भी कहा कि हम soil health card, अब आज देखिए हम ब्लड टेस्ट करवाने के लिए laboratory में जाते हैं, pathology laboratory में। आज pathology laboratory अपने-आप में एक बड़ा व्यापक बिजनेस बन गया है।प्राइवेट pathology laboratory होती है। क्यों न गांव-गांव हमारी soil test की लैब हो, ये संभव है? उसके लिए सर्टिफिकेट की रचना हो हमारी यूनिवर्सिटीज में, और उन लोगों के लिए मुद्रा योजना से पैसा मिले।उनको technology equipment उपलब्ध कराए जाएं। तो हर किसान को लगेगा भई, चलो भई खेती में जाने से पहले हम कम्पलीट हमारा soil test करवा लें और हम उसका रिपोर्ट लें, हम guidance लें। हम ये व्यवस्थाओं को विकसित कर सकते हैं और इससे देश में अगर हम गांव-गांव soil testing lab को बल देते हैं, लाखों ऐसे नौजवानों को रोजगार मिल सकता है और वो ये केंद्र एक प्रकार से गांव की किसानी activity में एक scientific temperament के लिए बहुत बड़ा कैटरिक agent बन सकता है। उस दिशा में हम काम करें।
पानी के संबंध में भी जैसे soil test की जरूरत है, पानी के टेस्ट भी हम उसी लैब में धीरे-धीरे develop करना चाहिए, क्योंकि किसान को इतनी तरह, उसको तरीका क्या है? वो बीज जहां से लाता है, जिंदगी भर उसी दुकान से बीज लाता है। उसको पता ही नहीं है, वो कहता है मैं पिछली बार कपड़े वाले पैकेट में ले गया था बीज, इस बार मुझे कपड़े वाला ही चाहिए, पॉलिथिन वाला नहीं चाहिए। इतना ही वो सोचता है और ले जाता है।
उसको गाइड करने के लिए आज digitally animation के द्वारा उसको समझाया जा सकता है, जो उसके मोबाइल में आएगा। अगर उसको बीज खरीदने जाना है तो उसको बता दो इन छह चीजों का ध्यान रखो फिर ये लो। तो वो सोचेगा, पूछेगा, दस सवाल पूछना शुरू करेगा।
हम communication में, वहां गुजरात में, सारे हिन्दुस्तान में आज जितनी जनसंख्या है उससे ज्यादा मोबाइल फोन हैं।Digitally connectivity है। हम animation के द्वारा किसान तक इन बातों को कैसे पहुंचा सकें, इन सारे विषयों को अगर हम ले जा सकते हैं; मैं जरूर मानता हूं कि हम बहुत बड़ा बदलाव इससे ला सकते हैं। तो हम इन्हीं चीजों को ले करके और जितने भी सुझाव...अब जैसे animal husbandry को लेकर विषय आया। अब जैसे हमारे यहां इन सारे विषयों में कोई कानून नहीं है, जैसे बताया गया।
मैं जरूर चाहूंगा कि department इसको देखे कि इस प्रकार के कानून की रचना हो ताकि इन चीजों को बल भी मिले और जो बुराइयां है उन बुराइयों से मुक्ति भी मिले, और एक standardized व्यवस्था विकसित हो। तो जितने सुझाव आए, और मेरे लिए भी बड़ा educating था, मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। इन विषयों में मेरी जानने की रुचि भी रही है। लेकिन आज बहुत-एक बातें नई भी मेरे लिए थीं। आपके लिए भी उपयोगी होंगी। Even हमारे department के लोगों के लिए भी होंगी। और जरूर मैं समझता हूं कि मंथन उपकारक होगा।
क्या कभी ये जो हमारे presentation हमने तैयार किए और जो हमारे actually field में काम करने वाले किसान हैं या जिनकी इस विषय में expertise है, राज्यों में जा करके, राज्यों से जुड़े हुए किसानों से मिल करके वैसा ही दो दिन का एक event हम वहां भी कर सकते हैं क्या? और वहां भी इसी की लाइन पर इसी के लाइन पर वो एक्सरसाइज करें। क्योंकि एक प्रयोग एक राज्य में चलता है, वही प्रयोग हमारा देश इतना बड़ा है- दूसरे राज्य में नहीं चलता है। एक मान्यता किसान के दिमाग में घर कर गई है, दूसरे राज्य में उसी विषय परदूसरी मान्यता घर कर गई है।
और इसीलिए हम agro climatic zone के हिसाब से कहें या state wise कहें, जो भी हमें ठीक लगे; हम उस दिशा में अगर एक, इसको एक स्टेप आगे बढ़ाएं तो मैं समझता हूं उपयोगी होगा। तीसरा, इन सारे विषयों के ऊपर सभी universities debate कर सकती हैं क्या? At least final year या last butone year, वहां के स्टूडेंट्स मिल करके जब तक हम meeting of mind नहीं करते हैं, जो चिंतन-चर्चा हम करते हैं, वो नीचे तक हम उसी रूप में delusionऔर diversion के बिना उसको नीचे नहीं ले जाते हैं, तब तक उसका परिणाम नहीं मिलता है।
और इसलिए इसी चीज को आगे बढ़ाने का एक roadmap, जिसमें universities हों, जिसमें students हों, और जिसमें expertise हो। हो सकता है सारे विषय कुछ ऐसे स्थान पर उपयोगी नहीं होंगे कि जहां पर जरूरत नहीं है। लेकिन जहां जरूरत है वहां कैसे हो?
यहां एक बात विस्तार से हम लोग नहीं कर पाए हैं और वो है value addition की। मैं समझता हूं कभी न कभी हमारे किसानों को value additionके, मेरा अपना अनुभव है। गुजरात में हमने जब ज्योति ग्राम योजना की थी, 24 घंटे बिजली। हमारे देश में एक वो revolutionary घटना मानी जाएगी कि 24 घंटे बिजली मिलना। तो हमने जब बिजली का launching करते थे तो गांव वालों को इस बिजली का उपयोग क्या है, सिर्फ टीवी देखना है क्या? क्या रात को उजाला हो, इतना ही है? और उसमें से उनको जिंदगी में बदलाव लाने के लिए क्या करना चाहिए, वो समझाने के लिए एक बहुत बड़ा इवेंट भी उसके साथ ऑर्गेनाइज करते थे।
गांधीनगर के पास एक गांव है। वो मिर्ची की खेती करता था। अब हमारे देश का ये मुसीबत है जब मिर्ची करेंगे तो सारे किसान मिर्ची कर देंगे, तो दाम गिर जाता है। तो उस पूरे गांव की सारी मिर्ची बेचें तो पूरे गांव को तीन लाख रुपये से ज्यादा इन्कम होती नहीं थी, संभव ही नहीं थी। गांव वालों ने क्या किया- उन्होंने कहा कि भई अब तो 24 घंटे बिजली मिलने वाली है, हम एक छोटी सी सोयायटी बना लें, हम आगे बढ़ते हैं। और तत्काल उन्होंने छोटी से सोयायटी बनाई और तत्काल बिजली का कनेक्शन लिया। उन्होंने मिर्ची को लाल बनने तक उसकी सारी प्रोसेस की, फिर लाल मिर्ची का पावडर बनाने के लिए processors ले आए, उसका पेकेजिंग किया। जो मिर्ची उनकी तीन लाख में जाने वाली थी, गांव का किसान मरने वाला था। तीन-चार महीने का प्लानिंग किया, उतनी जो कमी रह गई-रह गई, लेकिन तीन-चार महीने के बाद वो ही मिर्ची 18 लाख रुपये की इन्कम करके ले आई।
कहने का मेरा तात्पर्य है कि value addition के संबंध में भी हम किसानों को सहज रूप से बताएं। ये बात सही है कि दुनिया में जिस तेजी से, यहां export-import की बात हुई है, बहुत बड़ी बात है कि अब कोई तय करेगा कि कितना shortage रूप से आप लाए हो।
अब भारत जैसा विशाल देश, वो एक कोने में पैदावार हुई हो, पोर्ट तक जा करके लाएगा तो इतना transportation हुआ होगा। और फिर भी वो इसलिए reject हो जाएगा। आपको मालूम होगा दुनिया में ऐसी-ऐसी चीजें चलती हैं कि भारत की अगर दरी बढ़िया बिकती है तो कोई एक पूंछ लगा देगा ये तो child labor से हुई हैं, बस खत्म, दुनिया में व्यापार खत्म। तो ऐसी-ऐसी चीजें आती हैं तो हमने कागजी कार्रवाई परफेक्ट करनी होगी। हमारे किसानों को समझाना होगा और इन दिनों- इन दिनों मुझे दुनिया के कई देशों से इस बात के लिए लड़ना पड़ रहा है, उनसे जूझना पड़ रहा है कि आपका ये नियम और हमारा किसान जो पैदा करता है वो दोनों चीजें आप गलत interruption कर रहे हैं। interruption गलत कर रहे हैं। उनके आधार गलत हैं।
और उसी के कारण, अब आपको मालूम है हमारा mango, हमारा mango दुनिया में जाए, इसके लिए हमें इतनी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन हमारे किसानों को भी समझाना पड़ेगा, दुनिया में लॉबी अपना काम करती होगी, लेकिन हम, हमारी जो प्रोसेस सिस्टम है पूरी, उसको हमें globally में standardize करना पड़ेगा।
और इसलिए मैंने एक बार लाल किले से कहा था- हमारा उत्पादन zero defect-zero effect.क्योंकि दुनिया के main standard बनने वाले हैं। हमने हमारे एग्रीकल्चर प्रोडक्ट को और प्रोडक्ट एंड पैकेजिंग। अब हम organic farming के लिए कहें, लेकिन organic farming के लिए satisfy करने के लिए अगर लैब और इंस्टीट्यूट खड़ा नहीं करेंगे तो दुनिया में हमारा ऑर्गेनिक प्रोडक्ट जाएगा नहीं।
अब आज देखिए aromaticआज दुनिया में aromatic का बिजनेस ग्रोथ 40 percent मुझे बताया गया है। अगर 40 percent ग्रोथ है, उसका पूरा आधार एग्रीकल्चरल है। अगर एग्रीकल्चर उसका आधार है तो हम aromatic वर्ल्ड के अंदर भारत जैसे देश में छोटे-छोटे लोगों को इतना रोजगार मिल सकता है कि हम aromatic वर्ल्ड के अंदर अपनी बहुत सारी चीजें हम जोड़ सकते हैं।
और इसलिए मैं मानता हूं कि fragrance की दुनिया में और भारत विविधताओं से भरा हुआ है। हम fragrance की दुनिया में बहुत कुछ अपना contribute कर सकते हैं। और हम natural चीजें दे सकते हैं। तो हम विश्व के मार्केट को ध्यान में रखते हुए, हम भारत के किसानों को कैसे- मैं अभी इन दिनों gulf countries के लोगों से बात कर रहा हूं। मैं उनसे कह रहा हूं कि आपको किस क्वालिटी की चीजें खानी हैं, आप हमें suggestion दें। उस क्वालिटी की चीजें बनाने के लिए हम हमारे किसान तक टेक्नोलॉजी, प्रोसेस, सारा ले जाएंगे। लेकिन प्रोडक्ट आप उसके खेत से ही खरीदिए और आप ही अपने कोल्ड स्टोरेज बनाइए, अपने various warehousing बनाइए, आप ही अपनी transportation system खड़ी कीजिए, और पूरे गल्फ का पेट भरने का काम मेरे देश के किसान कर सकते हैं।
ये सारी बातें मेरी इन दिनों दुनियाभर के लोगों के साथ हो रही हैं, लेकिन मैं आपसे यही कहना चाहूंगा कि ये जो मेहनत आपने की है, इसका बहुत बड़ा लाभ मिलेगा। और मुझे- मैं जानता नहीं हूं पहले क्या होता था, लेकिन मैंने अफसरों को पूछा क्योंकि उनको काफी जानकारी होती है, क्योंकि पहले वो ही करते थे, अब भी वो ही कर रहे हैं। तो वो मुझे कह रहे थे कि साहब ऐसा पहले कभी हुआ नहीं है। ये पहली बार हुआ है कि जिसमें accommodations हैं, agro-economics वाले हैं, scientists हैं, agriculturist हैं, progressive agriculturist हैं, policy makers हैं, सबने मिल करके मंथन किया है और मंथन करने से पहले बहुत input ले करके किया है।
और मैं समझता हूं कि एक अच्छी दिशा में प्रयास है। और आप निराश मत होना कि मैं तो कहके आया था क्यों नहीं हुआ। हो सकता है कोई चीज लागू होने में टाइम लगता हो। इतनी बड़ी सरकार है, स्कूटर को मोड़ना है तो तुरंत मुड़ जाएगा, लेकिन एक बहुत बड़़ी ट्रेन मोड़नी है तो कहां से जाकर मोड़ना पड़ता है। तो कहां-कहां चले गए हैं, वहां से मुझे मोड़ करे लाना है, लेकिन आप लोगों के साथ मिल करके लाना है। और पूरे विश्वास से कहता हूं कि हम लाके रहेंगे। भारतीय किसान की आय को बढ़ाने के लिए हम मिल करके काम करें और इस संकल्प को पूरा करना है कि 2022हिन्दुस्तान के किसान की आय दोगुना करनी है। वो एग्रो प्रोडक्ट से हो, animal husbandry से हो, वो sweet revolution से हो, वो blue revolution से हो। जितने भी रास्ते किसानी से जुड़े हुए हैं, उन सभी रास्तों से हो करते हुए करें। इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबके योगदान के लिए मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं।
धन्यवाद।
अतुल तिवारी/ हिमांशु सिंह/ निर्मल शर्मा
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Ministry of Agriculture & Farmers Welfare
21-February, 2018 15:09 IST
Union Agriculture Minister Shri Radha Mohan Singh launches six new user friendly features of National Agriculture Market (e-NAM) Platform
e-NAM integrates Central Farmer Database to increase the efficiency and reduce queue time
The Union Minister of Agriculture & Farmers’ Welfare, Shri Radha Mohan Singh today launched six new features of National Agriculture Market (e-NAM) Platform to make it more users friendly.Shri Gajendra Singh Shekhawat, Union Minister of State for Agriculture was also present at the event. e-NAM is one of the major and important flagship schemes of the Government of India which is being implemented by Ministry of Agriculture & Farmers’ Welfare with the objective of providing competitive and remunerative price to farmers for their produce through online competitive bidding process.
Addressing the gathering, Shri Singh said that it is the dream of Hon’ble Prime Minister, Shri NarendraModi to double farmers’ income by 2022 and that farmers should become part of mainstream development. He said that the objective was to bring more transparency and competition and provide remunerative prices to farmers. Keeping in view the need of making marketing of commodities easier for farmers, e-NAM was envisioned and launched in 21 Mandis on 14th April 2016 which has now reached 479 Mandis across 14 states and 1 Union Territory. e-NAM website is now available in eight different languages (Hindi, English, Gujarati, Marathi, Tamil, Telugu, Bengali and Odia) while the live trading facility is available in six different language (Hindi, English, Bengali, Gujarati, Marathi & Telugu).
The Minister said that the agriculture ministry is now strengthening e-NAM platform with new and user-friendly features by rolling out MIS Dashboard for better analysis, BHIM payment facility by traders, mobile payment facility by traders, enhanced features on Mobile App such as gate entry and payment through mobile, integration of farmer’s database, eLearning module in e-NAM website etc.
- e-NAM Mobile App:
Mobile app is being enhanced in multi-dimension so that the entire operation for farmers and traders can be user friendly. Mobile app has been made multilingual. Now the Mandi operators can carry out one of the critical operation of Gate Entry directly from e-NAM Mobile App. This will also facilitate the farmers to do advance Gate Entry on Mobile app which in turn will reduce a lot of time for farmers coming in the Mandi and will bring huge efficiency and facilitate smooth arrival recording at the Gate. A new feature has been introduced for farmers where they can see the progress of their lot being traded and also real time bidding progress of price will be visible to farmers on Mobile App.
During the trade, facility of viewing the assaying certificate is made available to traders on the mobile app. Now, online payment by trader (buyer) can also be done from e-NAM Mobile App through debit card and net banking. This will help buyers to transfer the payment directly through the App and make it easier for traders in online payment to farmers. Also, SMS alert to farmer on receiving payment in their bank account will be sent thereby helping farmers in getting information of payment receipt.
- BHIM payment facility :
Currently e-NAM portal facilitates direct online payment to farmers through RTGS/NEFT, Debit Card and Internet Banking. Facilitation of Unified Payment Interface (UPI) through BHIM is another milestone in easing out payment to farmers which will also reduce the payment realization time from buyers’ account to the pool account and in turn disbursal to farmers.
- New and improved Website with eLearning Module:
A new website has been developed with improved and more informative features like live status of markets of e-NAM based on gate entry, latest information on events, dynamic training calendar etc. Also e-Learning module in Hindi language has been designed and incorporated in the website so that various stake holders can learn online about how to operate the system and continuously get trained on the system at their convenience. Currently the module is available in Hindi.
- MIS Dashboard:
MIS Dashboard based on Business intelligence will provide a greater insight into the performance of each Mandi in terms of arrival and trade. This will help the Mandi Board officials and APMC Secretary to compare the performance of each
Mandi on daily, weekly, monthly/quarterly and Year-on-Year Basis. This will also enable officials and Mandi Secretary in doing actual trade analysis from commodity level to State level operation. This will also be beneficial for the Mandi Board and Mandi Secretary in planning and coordinating their operation post historical analysis.
- Grievance Redressal Management System for Mandi Secretaries:
This system will help Mandi Secretary to raise technology issues related to portal/ software and its operation and also track the status of redressal of their query online.
- Integration with Farmer Database:
e-NAM has been integrated with Central Farmer Database so that the registration process becomes easier and Identification of farmers can be done easily on arrival at the Mandi Gate which will increase the efficiency and reduce queue time. This will help in managing the load at the Gate more efficiently during peak time in Rabi and Kharif and reduce waiting time for farmers at the entry gate.
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The Union Minister for Agriculture and Farmers Welfare, Shri Radha Mohan Singh addressing at the launch of the New features in the e-NAM portal and updated mobile app with new features, in New Delhi on February 21, 2018. The Minister of State for Agriculture and Farmers Welfare, Shri Gajendra Singh Shekhawat is also seen.
The Minister of State for Planning (I/C) and Chemicals & Fertilizers, Shri Rao Inderjit Singh briefing the media on the Union budget 2018-19 and NITI Aayog, in New Delhi on February 21, 2018. The CEO, NITI Aayog, Shri Amitabh Kant is also seen.
The Minister of State for Planning (I/C) and Chemicals & Fertilizers, Shri Rao Inderjit Singh briefing the media on the Union budget 2018-19 and NITI Aayog, in New Delhi on February 21, 2018. The CEO, NITI Aayog, Shri Amitabh Kant is also seen.